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कविता

बाजिगजराज सिवराज सैन साजतही

भूषण


बाजिगजराज सिवराज सैन साजतही,
दिल्लीदल गही दसा दीरघ दुखन की।
ततियाँ न तिलक सुथनियाँ पगनियाँ न,
घामै घुमरात छोड़ि सेजियाँ सुखन की।
'भूषन' भनत पति बाँह बहियाँन तेऊ,
छहियाँ छबीली ताकि रहियाँ रुखन की।
बालियाँ बिथुरि जिमि आलियाँ नलिन पर,
लालियाँ मलिन मुगलानियाँ मुखन की।।


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